लेख संग्रह - भाग 1 Shakti Singh Negi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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लेख संग्रह - भाग 1

प्रिय पाठकों इस संग्रह में मैंने कुछ सुंदर - सुंदर लेख लिखे हुए हैं।







जहां खिड़कियां बड़ी -बड़ी होती है, वहां के लोग बड़े-बड़े यानी लंबे -चौड़े होते हैं। वे लोग बुद्धिमान होते हैं। और स्वस्थ होते हैं। बुद्धिमान होने के कारण उनका शहर भी स्वस्थ रहता है। अतः बड़ी-बड़ी खिड़कियां अच्छे विचारों को दर्शाती हैं। अच्छी नस्ल को दर्शाती हैं। जहां खिड़कियां बड़ी -बड़ी होती है, वहां के लोग बड़े-बड़े यानी लंबे -चौड़े होते हैं। वे लोग बुद्धिमान होते हैं। और स्वस्थ होते हैं। बुद्धिमान होने के कारण उनका शहर भी स्वस्थ रहता है। अतः बड़ी-बड़ी खिड़कियां अच्छे विचारों को दर्शाती हैं। अच्छी नस्ल को दर्शाती हैं।







हर अच्छे शहर में खिड़कियां अच्छी-अच्छी होती हैं, बड़ी- बड़ी होती हैं। छोटे इलाके में खिडकियां छोटी होती हैं। बड़ी खिड़कियों वाले लोग अच्छी धूप और अच्छी हवा पसंद करते हैं।

उनके विचार भी अच्छी धूप और अच्छी हवा की तरह होने चाहिए और शायद होते भी हैं। यह तो बहुत अच्छी बात है। तो हर अच्छे शहर में अच्छी -अच्छी खिड़कियां होती हैं। तो हर अच्छा शहर खिड़कियों का शाहर होता है। आपकी क्या राय है, प्लीज बताइए ना।







मैं बचपन से ही बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का था। पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता था। थोड़ा बहुत खेलकूद में भी पार्टिसिपेट कर देता था। मुझे बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का बहुत ही ज्यादा शौक था। ज्यादातर मैं कॉमिक्स, उपन्यास तथा अन्य पुस्तकें पढ़ता रहता था। साथ में कोर्स की किताबें के भी टच में रहता था।

बचपन से ही मुझे कविता, कहानी, लेख आदि लिखने की बहुत अच्छी आदत लग गई थी। अभी भी मेरे पास उस समय के कांटेन्ट्स डायरियों के रूप में मौजूद हैं। तब से लेकर अब तक मैं लगभग 10- 12 डायरियां लिख चुका हूं।








तू बावरी मेरे प्यार में।

मैं बावरा तेरे प्यार में।।


तू बावरी मैं बावरा।

मैं बावरा तू बावरी।।








कभी-कभी मन करता है, यह दुनिया छोड़ के दुनिया के दूसरे किसी छोर पर जा बसूं। कोई अच्छा सा साथी हो, कोई प्यारा सा साथी हो। बस जंगल में कुटिया हो, किसी नदी के किनारे। बस मजा आ जाए जिंदगी का। कभी-कभी मन करता है, यह दुनिया छोड़ के दुनिया के दूसरे किसी छोर पर जा बसूं। कोई अच्छा सा साथी हो, कोई प्यारा सा साथी हो। बस जंगल में कुटिया हो, किसी नदी के किनारे। बस मजा आ जाए जिंदगी का।









बैड टाइम, मतलब बिस्तरे में सोने का समय। परंतु बिस्तर में आधे दिन तो आदमी सोता ही रहता है। लेकिन ज्यादातर लोगों का यह आधा समय, बेड टाइम, अच्छा समय होता है न कि बुरा टाइम हा हा हा हा। तो सुबह -सुबह जब आधा दिन जब नींद खुलती है। तो आलसी आदमी सबसे पहली चाय मांगते हैं बैठे-बैठे। पर हम जैसे लोग सुबह- सुबह उठ कर के सब काम निपटा के, नहा धो के, आराम से अपना काम करते हैं; लेखन इत्यादि का। तो बताइए मैं बुरा करता हूं या वह? मैं अच्छा करता हूं या वे हा हा हा।








इतनी सी रोशनी भी बहुत काम की होती है। इसी रोशनी में दुनिया में बड़े-बड़े काम हो जाते हैं। आप लोग समझदार हैं। समझ गए होंगे, आखिर समझदार को इशारा ही काफी होता है। इसी रोशनी में वह काम होते हैं, जिनको एक बच्चा नहीं समझ सकता। एक एक अनुभवी आदमी ही समझ सकता है।









उस समय मोबाइल नहीं होते थे। लोग चिट्ठी लिखा करते थे। तो मैं उस समय 10वीं में पढ़ता था। एक लड़की ने मुझे चिट्ठी लिखी। उस चिट्ठी में उसने अपना प्रेम निवेदन किया था। उस चिट्ठी को देख कर मेरा दिल बाग -बाग हो गया। आज भी जब-जब उस खत की याद आती है, तो मेरे मन में मानों लड्डू फूट पड़ते हैं। तो वह कथा है मेरे पहले प्यार का।








अक्सर मैंने देखा है कि कई पुरुष कहते हैं कि लड़कियों और महिलाओं को धोती या साड़ी पहननी चाहिए। मॉडर्न कपड़े नहीं। वह कहते हैं कि लड़कियां जींस पहनती हैं टॉप पहनती हैं। ऐसे पुरुष कहते हैं कि पहले की स्त्रियां धोती और ब्लाउज पहनती थी। यह तो भारतीय परिधान था। आजकल की लड़कियां अल्ट्रा मॉडर्न हो गई हैं,लगभग बिगड़ गई हैं जो जींस और टॉप पहनती हैं।


परंतु मैं भी कहना चाहता हूं पहले के पुरुष भी धोती और लंगोट पहनते थे। आजकल के अंडर वियर और पेंट कमीज पहनते हैं। मैं तो कहता हूं की धोती और ब्लाउज में तो कमर का हिस्सा दिखता है। टॉप और जींस में तो कमर का हिस्सा नहीं दिखता है। टॉप और जींस धोती और ब्लाउज से तो अच्छा सादा वस्त्र है।


शुरू शुरू में हमारे गांव में सलवार और कुर्ता जब शादीशुदा स्त्रियां पहनती थी। तो लोग बुरा नाम उनको रखते थे। लेकिन आज सलवार और कुर्ता साधारण वस्त्र बन गया है। तो कहने का मतलब यह है कि पोशाक कोई भी हो समय के अनुसार बदलती रहती है। और लोगों के विचार भी।


परंतु पुरुष हो या स्त्री या अंग दिखाऊ पोशाक नहीं पहननी चाहिए। नहीं तो उनको खुद को कष्ट हो जाता है असामाजिक तत्वों के द्वारा। लेकिन समय के अनुसार पोशाके बदलती रहती हैं, तो हमें थोड़ा लिबरल भी होना पड़ता है। आपकी क्या राय है?